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Friday, August 13, 2010

कितने आजाद हैं हम ????

"" अरे यार तुझे पता है क्या इस बार १५ अगस्त सन्डे को है... क्या ????  धत तेरे की  यार... एक छुट्टी मारी  गई...!!!    यह मेरे मन की बात नहीं बल्कि आज कल के हर इंसान के मन की आवाज है...  हो भी क्यों न आज १५ अगस्त हो या २६ जनवरी आम आदमी के लिए इन दोनों दिनों का मतलब  सिर्फ छुट्टी मानाने और घूमने के लिए मिली छुट्टी से है वैसे भी इन दोनों दिन होता क्या  है  वही घिसे-पिटे रटे रटाये राजनितिक भाषण , गली गली मैं मनोज कुमार की फिल्मों के  देश भक्ति के गाने और टीवी पर देशभक्ति की फ़िल्में और अखबार मैं भी वही सब पुरानी देशभक्ति की कहानियां जो पता नहीं कितनी बार पढ़ चुके हैं , ऐसे मैं क्यों न घूम ले या पिकनिक मन ली जाये क्योंकि अगले दिन से हर किसी को  अपनी अपनी व्यस्तताओं मैं भी तो लगना है.

वाकई आज की पीढ़ी के लिए इन ऐतिहासिक दिनों का शायद ही कोई महत्व रह गया है? और इस सब के पीछे कोई और नहीं बल्कि हमारे देश के नेता और हमारा तथाकथित सिस्टम है , आजादी के बाद से हमारे देश ने बहुत ज्यादा प्रगति की है बुनियादी जरूरत , विज्ञानं , तकनिकी , रक्षा , कला आदि क्षेत्रों  में आज हम आसमान की ऊंचाई को छु रहे है , लेकिन क्या वाकई में हम इतनी तरक्की कर रहे है या यह तरक्की और हमारी आजादी उस हाथी के दांत की तरह है जिसके खाने और दिखने के दांत अलग होते हैं ??   
शायद हाँ क्योंकि हम जितना विकास कर रहे हैं उतना ही पिछड़  भी तो रहे हैं..आज हम भेदभाव और प्रांतीयता के नाम पर लड़ने मैं भी तरक्की कर चुके हैं..  पहले सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर लड़ते थे , आज हिंदी  , मराठी और तमिल के नाम पर  लड़ रहे हैं..  आजादी के बाद से गरीबों को सपने दिखाए गए की उनकी गरीबी ख़तम हो जायेगी,,  पर आज गरीब की गरीबी और आमिर की अमीरी भी तरक्की पर है..कहने को हमारा देश तरक्की पर है पर बेरोजगारी भी तो तरक्की पर है हो भी क्यों न.. बेचारा बेरोजगार योग्य होते हुए भी सड़क पर भटक रहा है और अयोग्य लोग न सिर्फ राज कर रहे हैं बल्कि हर खली पद पे अपने -अपने लोगों को बिठा रहे हैं . बेरोजगारी बढ़ी तो महंगाई क्यों पीछे रहे मेह्नागाई इतनी बढ़ी है की  रोटी, दाल , चावल और सब्जी से भरी थाली की जगह सिर्फ रोटी और चटनी ही नजर आ रही है. 
देश ने रक्षा के क्षेत्र मैं भरी प्रगति की है पर उन जवानों को या उन शहीदों के परिवारों को क्या मिल रहा है वही ३००० या ५००० रूपए की पेंशन , बेचारा सिपाही जब अपने देश के लिए जान लुटा देता है तो उसकी जान की कीमत लगे जाती है ५००००० रूपए लेकिन जो लोग देश के मासूम लोगों की जान ले रहे है देश उन हत्यारों की सुरक्षा मैं कई करोड़ रूपए लुटा रहा है..  वाकई आज हम प्रगति पर हैं.. इतनी प्रगति हमे आजादी के बाद ही तो हासिल हुई है..
  ऐसी आजादी  जहाँ ताज होटल मैं चप्पल पहन कर आई एक वृद्धा को  बहार निकल दिया जाता है. अंगरेजी न बोल पाने के कारन लोगों को नोकरी नहीं दी जारही है , लोगों को प्यार करने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पद रही हो, नौकरी के लिए अन्य प्रान्त में गए लोगों को मार -मार  कर भगाया जा रहा हो... ऐसी आजादी का कोई गुणगान भी नहीं करना चाहेगा.
..रही बात आजाद होने पर गर्व करने की तो आजादी एक अनुभूति होती है जिसे सिर्फ महसूस किया जाना चाहिए और इसे महसूस करते हुए हमे यह भी सोचना चाहिए की क्या वाकई मैं हम आजाद हैं , सिर्फ अंग्रेजों के भारत छोड़ जाने से ही हम आजाद हो गए या अंग्रेजों के जाने के बाद हम अपने बनाये सिस्टम के गुलाम हो कर रह गए हैं..


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