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Thursday, May 21, 2009

मजबूत नेता निर्णायक सरकार.... यानि की कांग्रेस और मनमोहन singh

चुनाव के पहले भाजपा ने मनमोहन सिंह को हर तरह से एक कमजोर प्रधानमंत्री साबित करने के सारे पर्यटन किए थे, पर चुनाव के दौरान हे उनका यह हथियार उन पर ही चल गया और आडवानी जी कांग्रेस के साथ साथ पूरे देश के सामने अपने आप को एक मजबूत नेता साबित करने के लिए जी तोड़ म्हणत कर रहे थे , पार्टी भी कोई कसार नही छोड़ रही थी आडवानी जी के बचाव में । लेकिन चुनाव के बाद भाजपा का प्रचार का मुख्या नारा पूरी तरह से कांगरी और मनमोहन सिंह के ऊपर फिट बैठ गया है। ( क्या अब भी किसी भाजपाई को कोई शक है ?)

वाकई में चुनाव के बाद जो नतीजे आए हैं उनसे साफ़ हो गया है की कांग्रेस के शाशन की योजनायें और कांग्रेस के लिए राहुल और सोनिया का चमात्कारिक य्वाक्तित्व जादू कर गया , वहीँ आडवानी जी और उनकी मजबूत नेत्रत्व और निर्णायक क्षमता को जनता ने पूरी तरह से फ़ैल कर दिया जैसे की आईपीएल में भूकानन का गणित फ़ैल हो गया और अब तो आडवानी जी शायाद संसद में नेता प्रतिपक्ष के रूप में दिखाई न दे।

खैर जो भी हो अब तो कांग्रेस की बल्ले बल्ले है बिन मांगे हर छोटी बड़ी पार्टी कांग्रेस नित सरकार के संग खड़ी होना चाह रही है, सोनिया को अपना कट्टर दुश्मन मानने वाली माया भी और माया के कट्टर मुलायम भी , यही तो है लोकतंत्र का जादू जो इस बार खूब तेजी से चल गया।

"काश मेरा भी जादू चल जाए और मेरी झोली में भी कोई नौकरी गिर पड़े तो मुझ पर से बेरोजगार का ठप्पा तो हटे , कब हटेगा पता नही पर कभी तो हट ही जाएगा ..........हम भी ऐसे वैसे नही हैं जेब में नही है दाम........ पर घूम घूम के ढूंढ रहा हूँ काम ..... कभी तो मिल जायेगा... तो मेरा भी जादू चल जायेगा"।

दीपक सिंह

09425944583

Wednesday, May 20, 2009

लालू और पासवान की गलती या अति आत्मविश्वास !

आख़िर कार लालू जी और पासवान जी को यह बात स्वीकार करनी पड़ी की बिहार मैं कांग्रेस को दरकिनार करना दोनों की ही नेताओं और उनके दलों को महेंगा पड़ गया है, यहाँ तक की पासवान जी का तो संसद से पत्ता ही साफ़ हो गया है। बहुत पुरानी कहावत है की ज्यादा बड़ी बात और ज्यादा ऊंचा दावा कभी मुह से बहार नही निकालना चैयेह पर लालू जी और पासवान जी को क्या पता था की उनका बनाया चौथा मोर्चा दोनों नेताओं की राजनितिक हैसियत का तीसरा मनवा देगा जैसे की आईपीएल में कोलकाता की टीम और शाहरुख़ खान की जिद का दीवाला निकल गया , मतलब लालूजी , पासवान और शाहरुख़ इन सब के लिए गए निर्णय इनको न सिर्फ़ ग़लत साबित कर गए बल्कि इन्हे हँसी का पात्र भी बना गए।
यह सारा मामला यह साबित कर देता है की धीरे हे सही राष्ट्रीय दलों का खोया हुआ वजूद वापस लोट रहा है और क्षेत्रीय दलों को अपनी आत्म मुग्धता से अपने आप को बच्चा कर रखना होगा , फिर वो सपा हो, बसपा हो या लालू की और तमाम क्षेत्रीय दलों के पमुख हे क्यों न हो सबको एक बार सोचना तो पड़ेगा की क्या इनके दल वाकई इस काबिल है की इनके बिना कोई भी राष्ट्रीय दल अपना प्रभुतत्व नही जमा सकते ? यह सवाल क्या इन नेताओं को कुछ सोचने के लिए मजबूर करेगा ??? हो सकता है शायद कर भे दे पर उम्मीद तो कम है.

Friday, May 8, 2009

सत्ता के लोभी शैख़ चिल्ली , कुर्सी के पाने दौडे नई दिल्ही !

शैख़ चिल्ली के किस्से , कहानिया तो हम लोग बचपन से सुनते आ रहे हैं लेकिन आजकल के नेता किसी शैख़ चिल्ली से कम नजर नही आ रहे हैं। वैसे सरे नेता सालों से हम जैसे नागरिकों को ऐसे ही वादों और बैटन से मूर्ख बनाते आ रहे हैं और हम सब उनकी झल्लेदार बातों में आ जाते हैं। पर अब तो शैख़ चिल्ली के सपने काफ़ी ज्यादा ऊंचे हो गए हैं जैसे की कुछ शैख़ चिल्ली नेताओं का जिक्र करके साबित करते हैं की वोह शैख़ चिल्ली हैं या वाकई सच्चे राजनितिक व्यक्ति हैं।
सबसे पहले बात करते हैं करात साहब की , सारा देश जानता है की वाम दलों का देश में २ राज्यों को छोड़ कर क्या स्थान है , फिर भी सारे वाम दल सता पाना चाहते हैं और तो और इसी में से कुछ नेता प्रधानमंत्री तक बनाना चाह्ते हैं, अब इनका क्या होगा राम ही जाने।
मायावती के ख्वाब भी शैख़ चिल्ली से कम नही हैं , तभी तो वोह हर एक जगह अपने आप को देश का अगला प्रधान मंत्री घोषित कर रही हैं, उत्तर प्रदेश में उनकी सरकार है पर पूरे देश पर उनका राज सिवाय उनके कोई और नही सोच रहा है ।

अब बात हो जाए पवार साहब, मुलायम जी, लालू जी , देवगौड़ा जी जैसे नेताओं की जो सोच रहे हैं की इनके बिना कुछ हो नही सकता , और तो और शायद येही नेता कल को प्रधानमंती भी बन जायें, काश ऐसा हो जाए ? वैसे कम शैख़ चिल्ली तो कोई भी नही है , देखना है की किसके सपनो में कितना दम है। १६ तारीख ज्यादा दूर नही है सब पता चल जाएगा ........ तब तक इन्तेजार कर लेते हैं.

दीपक सिंह
09425944583

Monday, May 4, 2009

२० साल गठबंधन सरकारों के राज के , अब् किसकी बारी ?

२० साल पहले जब जन्मोर्चे के नेता वीपी सिंह के नेत्रत्व में सरकार बनी थी तब किसी ने शायद सोचा नही होगा की यह सरकार गठबंधन सरकार के नए युग की पहली कड़ी साबित होगी। विगत २० साल में देश में बहुत कुछ बदल गया है , २० साल में देश ने भारी प्रगति की है न सिर्फ़ आर्थिक, सामरिक और वैज्ञानिक रूप से बल्कि राजनीतिक रूप से तो बहुत ही ज्यादा प्रगति की है।

पहले जहाँ देश में सिर्फ़ कांग्रेस और भाजपा का ही वर्चस्व रहता था वहां अब् यह दोनों दल क्षेत्रीय दलों पर पूरी तरह निर्भर होकर रह गए हैं।
सपा , बसपा और जनता दल के सरे भाई बंधू चाहे वोह एस हो या उऊ ho । देश में जहाँ गिनती के नेता हुआ थे नेताओं की पूरी फौज खड़ी है । pradhanmantri की gaddi के lie जितने suyogya नेता अब् हैं उतने तो shaayad कभी भी नही थे।

विगत २० साल निश्चित रूप से आजादी के बाद के सबसे महत्त्वपूर्ण वर्ष मने जायेंगे , देखना है की अगला गठबंधन कोण सा बनेगा जो गठबंधन की राजनीती को एक और नया आयाम देगा.

Saturday, May 2, 2009

गिरता हुआ मतदान प्रतिशत ! जिम्मेदार कौन ??

इस बार के लोकसभा चुनाव में गिरते हुए मत प्रतिशत को लेकर काफी बहस हो रही हैकुछ लोग कहते हैं की गर्मी की वजह से ऐसा हो रहा हैतो कुछ लोग मतदाताओं के ऊपर सवाल उठा रहे हैं की मतदाता जागरूक नही हैं, तो कुछ लोग कुछ अन्य कारण बता रहे हैंपर किसी ने भी यह सोचा की कहीं हमारे नेता और उनके दलों का इसमे कोई योगदान हो सकता है ! जी हाँ मैं तो यही सोचता हूँ की कम मतदान की मुख्या वजह हमारे नेता और राजनितिक दल हैं, भारत मुख्या रूप से एक भावनात्मक देश है और यहाँ की जनता भी भावूक है, भोली हैइसी बात का फायदा हमारे नेता उठाते रहे हैं जाती, धरम , प्रान्त के आधार पर हर दल और नेता वोट माँगता है और शायद माँगता रहेगा

लेकिन आजकल का वोटर भावुक कम जागरूक ज्यादा हो गया है उसे नेताओं के झूठे वाडे, दावे ज्यादा दिन तक मूर्ख नही बना सकते , कुछ नेता जैसे की गोविंदा , धर्मेन्द्र जब अपने चुनाव क्षेत्र से जीते तो दुबारा वहां शायद ही कभी गए होंमुलायम सिंह हो या मायावती या लालू या पासवान जैसे नेता जो मंत्री पड़ के लिए ही चुनाव लड़ते हैं वोह भी जाती , और समाज के आधार पर और फिर पासवान साहब तो पिछले बार से मंत्री रहे हैं ! राजग और सप्रंग दोनों के संग

जनता अब जान गई है की नेता और अवसरवादी में क्या फर्क है फिर वो ममता बेनर्जी हो या उमा भारती या कल्याण सिंह ही क्यों हो, जो की मौके की नजाकत के आधार पर इधर या उधर हो जाते हैंहमारे देश में विको जैसे नेता भी हैं जो प्रभाकरन जैसे आतंकी का साथ देने के लिए तमिलनाडु में खून की नदी बहा देने को तैयार हैं , वही प्रभाकरन जो राजीव गाँधी की ह्त्या का मुख्या आरोपी मन जा रहा है.

खैर जो भी हो यह तो मेरी अपनी राइ है हो सकता है कुछ लोग मेरे विचार से सहमत हों पर यह सब एक सच है और हमे यह मानना ही होगा की जब तक हमारे नेता अपने वादों और दावों में फर्क करते रहेंगे , अवसरवादिता और सौदेबाजी को बढावा देंगे तब तक मत प्रतिशत में बढोतरी होनी मुश्किल है क्योंकि आज का मतदाता खासकर शेहरी मतदाता को कोई दल या नेता ज्यनाही बना sakt