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Monday, January 17, 2011

लॉबी घाट पर सबके ठाठ

हाँ तो भाई ..  यह जो दुनिया हैं ना  दुनिया इसमें दो तरह के प्राणी पाए  जाते हैं...एक वो जो सफल है और एक जो असफल हैं. जो सफल है उनको तो कोई दुःख नहीं है और जो असफल हैं उनको कोई सुख नहीं है...  बेचारा असफल आदमी या तो अपने नसीब को कोसता है या भगवन के ऊपर अपनी असफलता का ठीकरा फोड़ता है .
बेचारा भगवन भी करे तो क्या करे आज कल तो भगवन भी लॉबी घाट के  सहारे बैठा है हो भी क्यों ना भगवन भी उन्ही की सुनता है जो भगवान् को अच्छा खासा कमीशन देते हैं यानि की बढ़िया वाला भोग चढाते हैं .. बेचारे असफल यानि की गरीब आदमी के पास तो खुद खाने के लाले पड़े होते हैं तो ऐसे में भगवन को भला क्या खिलाये या क्या चढ़ाएं.
लॉबी से याद आता है की चुनाव में टिकिट  पाने के लिए नेता , अवार्ड  समारोह में अवार्ड पाने के लिए अभिनेता और टीम में चुने जाने के लिए खिलाडी ,बड़े बड़े उधोगपति बड़े बड़े टेंडर पाने के लिए किस तह की लॉबी करते हैं यह तो सब जानते है और किस तरह राडिया नामक लॉबी एक्सपर्ट इस पुण्य काम में उतने ही महान माने जाते हैं जितना की क्रिकेट में सचिन.  सरकारी 
नौकरी पाने या दिलवाने के लिए लगे रिश्तेदारों या परिचितों की भीड़ हर जगह लॉबी है.. और इसका बोलबाला है...
 एक समय में गांधीगीरी का बोलबाला था  , फिर  दादागीरी का जमाना रहा .....अब  हर कहीं लॉबी गीरी का जमाना है  और जो इस लॉबी गीरी के ज़माने में पीछे रह गया वो तो फिर आगे आ ही नहीं सकता ..   तो यदि आपको इस समय में , इस ज़माने में आगे  जाना है, तरक्की   पाना है तो इस ब्रम्हास्त्र का प्रयोग नितांत आवश्यक है आप में कोई प्रतिभा हो ना हो, कुछ कर दिखने का जज्बा हो ना हो, मेहनत करने में आगे हो ना हो..  लॉबी गीरी में आपको आगे होना ही होगा  ..और वैसे भी लॉबी में जाता ही क्या है...  बस आगे पीछे ही तो घूमना है, जम के तेल लगाना है, झूठी मूठी तारीफ करनी है बस और क्या चाहिए  ..?????    यदी आप में यह सब कुछ है तो फिर आप सफलता के सातवे आसमान पे होंगे ...  दुनिया आप के नाम की 
माला जपेगी..  और बस फिर लोग आपके पीछे  और आप भी इस लोबी घाट  के मानद सदस्य बन जायेंगे.
   तो फिर मेहनत करना छोडो और लॉबी करना शुरू करो...क्या रखा है मेहनत में..  जो मजा लॉबी , और चमचा गीरी में है वो सुख मेहनत की कमी कंही नहीं दे सकती ..  तो मेहनत में  समय व्यर्थ ना कर और जा जाकर  लॉबी घाट पे जा कर चमचा गीरी, तेल मालिश और लॉबी गीरी कर  कर...  तेरा उद्धार होगा 

दीपक सिंह राजावत 
9022960206

Thursday, January 6, 2011

A little gift - deepak

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Monday, December 20, 2010

दुनिया पर एक नजर झटके में !! क्योंकि हर झटका कुछ कहता है....!!

बड़ी ही मजेदार बात है भाई , हमारी फिल्मों के गाने भी अकस्मात् ही हमारे समाज और देश की कथा और व्यथा को  बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के या  मकसद के व्यक्त कर देते हैं जैसे आज के एक हिट गाने को लीजिये  , गाने के बोल है की  " जोर का झटका हाय  जोरों से जगा ..हाँ लगा "  लेकिन ये जोर का झटका कुछ ज्यादा ही जोर से  झटके  दे रहा  है , जैसे की आजकल हमारे देश के नेताओं को , मंत्रिओं  , मुख्या मंत्रिओं को  अबिनेताओं को , निर्देशकों को और कई सारे सफल , संपन्न और पहुँच वाले लोगों को ४४० वाट से भी बड़े बड़े झटके लग रहे हैं !
ऐसे में इस गाने की प्रासंगिकता कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती  है  यह बात और है की  जिस फिल्म का यह गाना है उसके निर्माता को , कलाकारों को कुछ क्यादा ही जोर का  झटका लग गया तभी तो इस गाने को छोड़  पूरी फिल्म को झटका लग गया !  खैर यह तो पिक्चर की बात है , हकीकत मैं तो कुछ ज्यादा ही झटकेदार पिक्चर चल रही है , कांग्रेस के बेनर तले बन रही नई नई  कहानिओ के पात्र और घटनाएँ  जैसे जैसे बहार आ रहे हैं एक नया झटका देते जा रहे हैं ,  एक आदर्श झटका अशोक चव्हाण देने वाले थे तो उनको ही झटका लग गया , यही हाल 2g  किंग का हुआ झटके से अरब पति बनने चले थे झटका खा के रह गए .
वहीँ कुछ झटका टाटा को  भी  लगा  इस झटके ने कई सरे बड़े बड़े  उद्योग पतिओं को भी झटके से संभलने  का  एक मौका दिया तभी तो  सब उद्योगपति अपनी अपनी फ़ोन लाइन की निगरानी में झटके से लग गए की कहीं उनको धोके से भी  झटका ना लग जाये. वहीँ wikilieaks कांड ने पूरी दुनिया को झटका दे दिया , तो भारत की क्रिकेट टीम को दक्षिण अफ्रीका जाते ही झटका लग गया , जहीर की चोट का नहीं  , बल्कि १३६  रन पर आउट होने का झटका ...लेकिन इन झटकों के बीच में सचिन ने एक झटके से अपना ५०वा शतक पूरा कर दक्षिण अफ्रीका के गेंदबाजों को झटका दे दिया वहीँ इंग्लैंड जो एक झटके से ashesh  को जीतने के सपने देख रहा था उसे ऑस्ट्रेलिया ने झटका दे दिया ...   भाई यह तो दुनिया दारी बातें रह गयी इन बातों से अपने आम आदमी को क्या  लेकिन जब आस पास इतने झटके हो तो   इन सारे झटकों के बीच आम आदमी कैसे ठीक रह सकता है...  हालांकि आम आदमी तो झटक खाने की आदत माँ के पेट से ही सीख के आता  है , मगर  सरकार अपने आम  आदमी की सेहत का पूरा ध्यान रखती है  तभी तो  महंगाई के ज़माने में इस आम आदमी को पयाग खिलने के बहाने नया झटका दे दिया ६० रुपये किलो का झटका...
 तो इस झटके लीला के क्या कहने इन झटकों ने तो पूरा एक पेज भर दिया , कहने को तो काफी है पर करे क्या साइबर में बैठ के और लिखूंगा तो साइबर वाला मुझे भी एक झटका दे डालेगा...
बस क्या  अगली  मुलाकात तक ..   .  संभल के रहिये ..  खुश रहिये और हाँ जिन्दगी के झटकों का आनंद लेते रहिये.          

Deepak singh 
09022960206

Monday, September 6, 2010

बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम तो हुआ....

पाकिस्तान  के ४ खिलाडी फिक्सिंग की फांस मैं फंस गए हैं... तो वहीँ भारत के कलमाड़ी साहब भी कुछ इसी तरह के आरोपों में घिरे हैं..  लेकिन इस सब से उन खिलाडिओं को या अपने कलमाड़ी जी कोई टेंशन नहीं है.. भाई पब्लिसिटी  तो हो हे रही है न..  बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम तो हुआ...  
वैसे भी कितने लोग ऐसे हैं जो लोग किसी अख़बार या किसी न्यूज़ चैनेल मैं  अपनी एक फिक्स जगह बना पाए हैं... आज हर कोई आमेर , आसिफ या बट को जनता है वहीँ अपने कलमाड़ी जी को भी बच्चा  - बच्चा जानने लगा है..यह शोहरत और यह कीर्तिमान कोई अच्छा या बड़ा कम करने से तो मिलेगा नहीं और हाँ ..  इस तह के काम करने के बाद इन जैसे लोगों  लिए रोजगार के भी नए अवसर खुल सकते हैं..   जैसे की कोई टीवी चैनेल  इन्हें  अपने शो मैं बुलाएगा... कुछ नहीं तो बिग बॉस जैसे शो मैं तो इनका  आना १००% पक्का हो जायेगा...   जहाँ यह लोग टीवी पर आकर हर किसी को बता सकेंगे की कैसे कोई मैच या कोई आयोजन फिक्स किया जाता है.. कैसे पैसा बनाया जाता है और कैसे कोई छोटा से छोटा काम भी कई सालों मैं लाखों - करोड़ों रुपये खर्च कर के किया जा सकता है..  भाई ऐसा ज्ञान देने वालों को तो वाकई मैं नेशनल टीवी पर आन चैयेह और अपना ज्ञान बांटना चाहिए .
सलमान बूट हो या आसिफ या आमेर जिस तरह से आजकल टीवी पर इनके हँसते हुए चेहरे और अपने कलमाडी जी का विश्वास से भरा हुआ चेहरा दिखाया जा रहा है उससे तो यही साबित हटा है की इनको अपने किए गए ऐतिहासिक कार्यों  पर गर्व है...  लेकिन उन सब लोगों का क्या जो इन जैसे लोगों के किए गए कार्यों मैओं कमी निकल रहे हैं या इनको सजा देने की मांग कर रहे हैं..." मेरे ख्याल से यह लोग इस बात से ज्यादा चिढ़े हुए हैं की भला इनको इतना मान सामान मिल रहा है और हमसे सिर्फ राय माँगी जा रही है .  बताइए भला उनको सब दे दो और हमको कुछ देना तो दूर राय भी मांग लेते हो...बड़ी ना इंसाफी   है ...
खैर जो भी हो चाहे इन जैसे लोगों का कुछ हो या ना हो...   यह लोग आज एक बहुत बड़ी हस्ती बन चुके है..पूरा संसार आँखें  फाड़ के इनकी  तरफ देख रहा है...की कैसे इनके ऊपर दौलत और शौहरत की बारिश हो रही है और कैसे हम जैसे मेहनती , शरीफ और  भलाई करने वालों को कोई नहीं पूछ रहा है...  मीडिया और तमाम माध्यम इन जैसे लोगों को हाथों हाथ ले रहे है,,,   इससे क्या साबित हो रहा है...  इसे तो साबित यही हो रहा है की..प्रस्सधि पाना है. नाम कमाना है तो कोई लफड़ा कर दो... नाम मिलेगा , दाम मिलेगा और खूब काम भी मिलेगा...  मेरी बातों पर भरोसा नहीं तो खुद ही देखो ना.. संजय दत्त, फरदीन खान , सलमान खान , राहुल महाजन, मोनिका बेदी या शाइनी आहूजा   ....जैसे लोगों को जिन पर कई केस चले और चल भी रहे हैं ...  आज यह लोग शोहरत के आसमान पर बैठे हैं...और तो और कई सारे टीवी चैनेल इन लोगों को दुनिया भर मैं  प्रसिद्द बनाने  मैं लगे है...
  तो कुल मिला के सब बातों का सार तो यही  है भैया की वो दिन गए जब आपको इमानदारी और मेहनत के काम का इनाम मिलता था, आज तो इस तरह के लोगों को  आउट डेटेड कहा जाता है..  चलो अच्छा ही है..  कुछ नया तो सीखने को मिला ... की नाम मत बनाओ ..  बदनाम हो जाओ ताकि नाम खुद ही बन जाये.. पर मैं ऐसा क्या करूँ .. कुछ सलाह दो ना...

Thursday, August 19, 2010

जागरण के लेख के सन्दर्भ मैं मेरे विचार..

कांग्रेस की अनैतिकता..
वाकई कुलदीप जी ने जो तथ्य और जो मुद्दा उठाया है , और जो सवाल उठाये हैं उनका जवाब मिलना शायद मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा..   क्योंकि सिर्फ दस्तावेजों की नहीं रह गई है चाहे आजादी से सम्बंधित दस्तावेज हों या आपातकाल से सम्बंधित दस्तावेज , चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष... हर कोई मौन है और शायद मौन रहेगा.. क्योंकि इन दस्तावेजों से किस को क्या फायदा होने वाला है ...  क्योंकि इस राजनितिक हमाम  मैं सब एक जैसे हैं....  ऐसे मैं उन दस्तावेजों के लापता होने की वजह नहीं बल्कि उसका ठीकरा किसके सर फोड़ा जाये और कांग्रेस खुद अपना दमन कैसे बचाए , सरकर का पूरा ध्यान तो सिर्फ इसी बात पर रहेगा ... वैसे भी कांग्रेस पार्टी हमेशा से ही अपनी गलतियों के बचाव के लिए अन्य गड़े हुए मुद्दों को उभरती आई है और सच्चाई से मुह छुपाती आई है.. ऐसे मैं कांग्रेस के अनैतिक आचरण को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता चाहे भोपाल कांड हो या बोफ़ोर्स कांड हो या इन दोनों घोटालों में बरती गई कांग्रेसी ढिलाई हर किसी को पता है...

उद्देश्य से भटका आयोजन..
इसी विषय पर मेरा एक पूर्व लिखित ब्लॉग पढ़ें.. बात सिर्फ कॉमन वेल्थ गमेस की नहीं है.. बातउस मुद्दे की है की क्या हमारे देश की नाक और इज्जत इन खेलों की वजह से दांव पर लग चुकी है वो भी ढीली ढाली और सुस्त " हिन्दुस्तानी "  कार्यशेली के कारन . यहाँ हुन्दुस्तानी से मेरा आशय हमारे देश की उस कार्य प्रणाली से है जहाँ हर किसी कार्य की तय समय सीमा हर तय समय पर एक और तय समय के लिए बढ़ा दी जाते है..  ऐसे मैं इन खेलों की वजह से हमारे देश की किरकिरी तो होना स्वाभाविक सी baat है..  और रही बात दिल्ली की बेहाल सूरत की तो दिल्ली का तो अब भगवान् ही मालिक है , वैसे शीला जी पूरी तरह से विश्वस्त हैं की तय समय सीमा के भीतर न सिर्फ दिल्ली में हो रहे विकास कार्य पूरे हो सकेंगे बल्कि दिल्ली कॉमन वेल्थ खेलों का आयोजन विश्वस्तर से भी बढ़ कर करेगी.  हाँ भाई हमे भी यही उम्मीद है वैसे भी अब तो खुद प्रधान मंत्री जी ने इन खेलों की कमान संभाल ली है ..   काश यह कदम उन्होंने पहले उथया होता .. तो कम से कम कलमाड़ी जी और उनकी मण्डली की वजह से देश की आम जनता की आँखों मैं यह खेल करक तो न रहे होते..   क्योंकि यह खेल चाहे  देश की साख को बचा जाएँ पर उस बहरे दिल्ली वाले आम इंसान का क्या जो इन खेलों के कारन पिछले न जाने कितने दिनों से परेशां हुआ जा रहा है...

जागरण के लेख के सन्दर्भ मैं मेरे विचार..

Tuesday, August 17, 2010

टेंशन लेने का नहीं क्या...!!!

आज के इस भाग दौड़ और तनाव भरे जीवन मैं हमे हर पल किसी न किसी बात की चिंता बनी ही रहती है..हम चाहे कितना भी चाहें यह तनाव और यह चिंता हमे कहीं न कहीं  घेर ही लेती है जैसे की ,   जब हम घर से निकलते हैं तो ऑफिस जल्दी पहुँचने की चिंता , ऑफिस मैं बॉस के गुस्से से बचने की चिंता , ऑफिस में तरक्की पाने की चिंता , महीने के अंत मैं तनख्वा मिलेगी या नहीं इसकी चिंता  इत्यादि .  तो घर मैं तो चिंताओं का भण्डार ही लगा रहता है कभी बच्चों की पढाई लिखाई की चिंता तो कभी जरूरी चीजों की पूर्ती के लिए प्रबंध करने की चिंता , कभी इसकी तो कभी उसकी किसी न किसी बात की चिंता तो हर किसी को लगी ही रहती है ..
कहने को तो हमसे हर कोई कहता है की चिंता चिता के सामान होती है ,,  मगर इससे क्या कोई चिंता करना छोड़ देता है..  चिंता या टेंशन या तनाव कोई भी व्यक्ति जान भूझकर तो नहीं करता और कोई करना भी नहीं चाहता, लेकिन इस तनाव और चिंता ने अपना दायरा इस कदर बाधा लिया है की आज कल के बच्चे भी इसकी चपेट मैं आने लगे हैं, इसी का तो कारन   है की छोटी सी उम्र मैं बच्चे आत्महत्या जैसा कदम उठाने लगे हैं, यदि कोई बच्चा परीक्षा मैं फ़ैल  हो गया, या उसके नम्बर कम आये तो उसे चिंता और तनाव होने लगता है की अब क्या होगा , घर पर डांट पड़ेगी, पापा और मम्मी मारेगी  ..और भी तमाम तरह के विचार आने लगते हैं  बस हो गया उस बेचारे मासूम से बच्चे को तनाव या जिसे हम कहते हैं " स्ट्रेस" 
क्या इस चिंता या इस तनाव का कोई इलाज है ..  ???? हम में से हर कोई सोचेगा की इसका क्या इलाज होगा ???   मैं कहता हूँ की इसका इलाज है, और इलाज भी कोई बहुत पेचीदा नहीं है ,, इस इलाज को हर कोई अफ्फोर्ड कर सकता है , इलाज है की जितना भी हो सके खुशमिजाज रहिये , हर किसी मुसीबत का एक हल होता है इसलिए चिंता करने के बजाय मुसीबत या समस्या का हल ढूँढने की कोशिश करें, कभी भी तनाव आप पर हावी न हो इसलिए  सदा आशावादी रवैया लेकर चलें. कभी भी यह न सोचें की "" हाय राम अब क्या होगा"" जीवन हमारी सबसे बड़ी पाठशाला है इसलिए हर किसी बात से एक सबक लेकर चलें,  यदि आपके साथ कुछ गलत हो गया , कुछ नहीं मिला या आप किसी इम्तिहान मैं फ़ैल हो गए तो क्या हुआ ??? जिन्दगी वहीँ पर ठहर तो नहीं जाती न.. जरा सोचिये आज जो लोग कामयाब हैं. क्या उन लोगों ने तनाव का सामना नहीं किया ?  किया है और उस तनाव पर उन्होंने विजय पाई इसलिए आज यह लोग कामयाब हैं..अब्राहम लिंकन को आज दुनिया याद करती है लेकिन अपने समय में वे एक "  लूसर या एक असफल इंसान कहलाते थे"  तो क्या वे जीवन भर असफल रहे??  नहीं वे एक सफल राष्ट्राध्यक्ष बने और आज पूरा विश्व उनके बताये रास्ते पर चल रहा है..  इन बातों का ध्येय यही है की खुश रहिये और चिंता को अपने पर हावी मत होने दीजिये. चिंता मग्न होकर आप कोई काम करेंगे भी तो वो काम आपको नुक्सान ही पहुंचाएगा इसलिए खुशमिजाज रहें और आपके आसपास भी हंसी ख़ुशी का माहोल रखें , और हाँ कभी भी किसी पर अपनी राय  या अपना नजरिया थोपने से बचे क्योंकि इन्ही आदतों से तनाव और चिंता बढती है ...  याद रखें खुश रहेंगे तो आपको देख कर लोग भी खुश रहेंगे , लेकिन आपको रोता हुआ या तनाव ग्रस्त देख कर लोग भी आपसे कतराने लगेंगे ...और सोचेंगे की यार यह तो हमेशा ही टेंशन मैं रहता है ,  इसके पास आकर अपने को भी टेंशन लग जायेगी ..  चलो निकल लो इसके पास से..
ऐसा मत होने दीजिये और यदि कुछ गलत हो भी गया तो यह मत सोचिये की अब क्या होगा???   जीवन बहुत बड़ा है और आपके लिए भी उस इश्वर ने कुछ सोच रखा होगा इसलिए क्षणिक असफलताओं को भुलाकर जीवन का अनद लेते हुए अपने लक्ष्य को पाने मैं लग जाइये और देखिये की आप कहाँ पहुँचते हैं...

Friday, August 13, 2010

कितने आजाद हैं हम ????

"" अरे यार तुझे पता है क्या इस बार १५ अगस्त सन्डे को है... क्या ????  धत तेरे की  यार... एक छुट्टी मारी  गई...!!!    यह मेरे मन की बात नहीं बल्कि आज कल के हर इंसान के मन की आवाज है...  हो भी क्यों न आज १५ अगस्त हो या २६ जनवरी आम आदमी के लिए इन दोनों दिनों का मतलब  सिर्फ छुट्टी मानाने और घूमने के लिए मिली छुट्टी से है वैसे भी इन दोनों दिन होता क्या  है  वही घिसे-पिटे रटे रटाये राजनितिक भाषण , गली गली मैं मनोज कुमार की फिल्मों के  देश भक्ति के गाने और टीवी पर देशभक्ति की फ़िल्में और अखबार मैं भी वही सब पुरानी देशभक्ति की कहानियां जो पता नहीं कितनी बार पढ़ चुके हैं , ऐसे मैं क्यों न घूम ले या पिकनिक मन ली जाये क्योंकि अगले दिन से हर किसी को  अपनी अपनी व्यस्तताओं मैं भी तो लगना है.

वाकई आज की पीढ़ी के लिए इन ऐतिहासिक दिनों का शायद ही कोई महत्व रह गया है? और इस सब के पीछे कोई और नहीं बल्कि हमारे देश के नेता और हमारा तथाकथित सिस्टम है , आजादी के बाद से हमारे देश ने बहुत ज्यादा प्रगति की है बुनियादी जरूरत , विज्ञानं , तकनिकी , रक्षा , कला आदि क्षेत्रों  में आज हम आसमान की ऊंचाई को छु रहे है , लेकिन क्या वाकई में हम इतनी तरक्की कर रहे है या यह तरक्की और हमारी आजादी उस हाथी के दांत की तरह है जिसके खाने और दिखने के दांत अलग होते हैं ??   
शायद हाँ क्योंकि हम जितना विकास कर रहे हैं उतना ही पिछड़  भी तो रहे हैं..आज हम भेदभाव और प्रांतीयता के नाम पर लड़ने मैं भी तरक्की कर चुके हैं..  पहले सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर लड़ते थे , आज हिंदी  , मराठी और तमिल के नाम पर  लड़ रहे हैं..  आजादी के बाद से गरीबों को सपने दिखाए गए की उनकी गरीबी ख़तम हो जायेगी,,  पर आज गरीब की गरीबी और आमिर की अमीरी भी तरक्की पर है..कहने को हमारा देश तरक्की पर है पर बेरोजगारी भी तो तरक्की पर है हो भी क्यों न.. बेचारा बेरोजगार योग्य होते हुए भी सड़क पर भटक रहा है और अयोग्य लोग न सिर्फ राज कर रहे हैं बल्कि हर खली पद पे अपने -अपने लोगों को बिठा रहे हैं . बेरोजगारी बढ़ी तो महंगाई क्यों पीछे रहे मेह्नागाई इतनी बढ़ी है की  रोटी, दाल , चावल और सब्जी से भरी थाली की जगह सिर्फ रोटी और चटनी ही नजर आ रही है. 
देश ने रक्षा के क्षेत्र मैं भरी प्रगति की है पर उन जवानों को या उन शहीदों के परिवारों को क्या मिल रहा है वही ३००० या ५००० रूपए की पेंशन , बेचारा सिपाही जब अपने देश के लिए जान लुटा देता है तो उसकी जान की कीमत लगे जाती है ५००००० रूपए लेकिन जो लोग देश के मासूम लोगों की जान ले रहे है देश उन हत्यारों की सुरक्षा मैं कई करोड़ रूपए लुटा रहा है..  वाकई आज हम प्रगति पर हैं.. इतनी प्रगति हमे आजादी के बाद ही तो हासिल हुई है..
  ऐसी आजादी  जहाँ ताज होटल मैं चप्पल पहन कर आई एक वृद्धा को  बहार निकल दिया जाता है. अंगरेजी न बोल पाने के कारन लोगों को नोकरी नहीं दी जारही है , लोगों को प्यार करने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पद रही हो, नौकरी के लिए अन्य प्रान्त में गए लोगों को मार -मार  कर भगाया जा रहा हो... ऐसी आजादी का कोई गुणगान भी नहीं करना चाहेगा.
..रही बात आजाद होने पर गर्व करने की तो आजादी एक अनुभूति होती है जिसे सिर्फ महसूस किया जाना चाहिए और इसे महसूस करते हुए हमे यह भी सोचना चाहिए की क्या वाकई मैं हम आजाद हैं , सिर्फ अंग्रेजों के भारत छोड़ जाने से ही हम आजाद हो गए या अंग्रेजों के जाने के बाद हम अपने बनाये सिस्टम के गुलाम हो कर रह गए हैं..