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Thursday, December 31, 2009

वनवास.. सजा परवरिश की....

वनवास ... उसका   बचपन तो बीता था हर किसी की तरह से, लेकिन जैसे जऐसे वो बड़ा हुआ उसे लगने लगा की उसके साथ कुछ ऐसा होने वाला है जो शायाद हर  किसी के साथ नहीं होता है. और जब उसकी हादी हो गयी तो भी वो नहीं जान सका की किस्मत का खेल क्या होगा...  उसके साथ किस्मत और खुद भगवान् ने सोच रखा था   " वनवास" ..   जी हाँ वनवास लेकिन क्यों और कैसे मिला था उसे वनवास , क्या था कारन , क्या ठी उसकी गलती या यह था उसका नसीब , उसके वनवास में भी उसका प्यार उसका सहारा बना ..यह कोई कालानिक कहानी नहीं बल्कि ये है ...  मेरी अपनी आप बीती यानि मेरी  कहानी   जिसके साथ यह सब हुआ वो कोई और नहीं मैं यानी दीपक हूँ और में आज भी झेल रहा हूँ मेरा " वनवास"   

भ्रम

भ्रम क्या है ????
वो जो हम देख रहे हैं,,  या वो जो हमसे छुपा है,या छुपाया जा रहा है !!! सच्चाई और भ्रम के इसी चक्कर में इंसान की जिन्दगी फंसी हुई है...   भ्रम  को समझ पाना  जितना मुश्किल होता है उतना ही खतरनाक होता है हमारे लिए .भ्रम को न जान पाना . आखिर क्या है फर्क भ्रम और सच के बीच ?  इसी जदोजाहत के बीच में फंसी है हमारी , तुम्हारी और हर किसी की जिन्दगी .......    
ऐसा ही कुछ हो रहा है  शिव के साथ ..  उसे लगता है की जिन्दगी में उसे जो भी लोग मिले हैं सब उसके दोस्त और चाहने वाले ही हैं, कोई भी उसका दुश्मन नहीं है, लेकिन यह भ्रम जब तक रहता है सब कुछ ठीक रहता है लेकिन जैसे ही यह भ्रम टूटेगा तो क्या होगा ????...  यही सब कुछ है इस कहानी में जिसका नाम है """भ्रम"" 

Thursday, December 3, 2009

अब से कोई भी करो मत दान यानी... की say no vote.....

ज्यादअ समय बीता नहीं है लोकसभा चुनाव को बीते,  याद है किस तरह से हमने अपने वोट का प्रयोग बढ़ चढ़ कर किया था , ताकि हम चुन सके अपनी सबसे बेहतर सरकार.... तमाम तरह के चुनावी वादों के बीच जनता ने चुने थे अपने पसंदीदा उम्मीदवार ताकि वेह कुछ नया कर सकें.....   लेकिन क्या हम कुछ नया देख्ज रहें है....  ?????   हाँ नए के नाम पर नए घोटाले,,  नए नए विवाद नया नया विरोध तो नयी नयी  सुलह...      कभी हम सुनते और देखते हैं की किस तरह मदु कोड़ा ने बटोरे हजारों करोड़  रुपये ..  तो हमने देखा राज ठाकरे के चुने गए विधयानको की गुंडागर्दी वोह भी  विधानसभा में...  तो अभी हाल ही में मुलायम आयर कल्याण सिंह की जानी दोस्ती कब टूट गयी कोई नहीं जान पाया...    हद हो चुकी है....  क्या अब भी हम लोगों को किसी नेता को वोट देना चाहिए,,,  किसी को भी चुनो  सब के सब एक जैसे ही निकलते हैं.....  जो आज हमारे साथ है..  वोह कल किसी और के साथ हो जायेगा...  जो आज आये हैं  वोट मांगने की हम जनता की सेवा करेंगे,, अल को लाल या नीली बत्ती लगा कर विशेष अधिकारों से लेस्स  होकर हमे ही दुत्कार के भगायेंगे....  इसलिए...  लोकतंत्र के हित में अब हम जनता को ही आगे आना होगा..   इसलिए...   मत करो अपना कीमती  वोट दान.....   मत करो मतदान...

Tuesday, December 1, 2009

THE END

THE END....     यह कहानी है एक अंत की....  जिसको कोई भी लाख कोशिश करके भी ताल नहीं सकता...  कहानी शुरू होती है... मुंबई में हुए २६\११ के बाद के हालात की,,  जहाँ पर अब सब कुछ सामान्य हो चूका है.. लोग सब कुछ भूल कर जीवन को फिर उसी तरह से जी रहे हैं... लेकिन हर किसी के मन में यह दर कहीं न कहीं है की न जाने कब क्या हो जाए....  ऐसे ही एक दिन अतुल जो की पुलिस में है...    मिलता है एक अनजान सी लड़की से जो अपने मन में पाले है अजीब सा गुस्सा इस समाज के प्रति, इस सत्ता के प्रति और इस पुलिस और क़ानून के खिलाफ क्योंकि उसके मुताबिक़ उसने पिछले दिनों जो कुछ भी खोया है इन सब के कारन खोया है  और वो इस सब का अंत करके रहेगी.......    इस बात को अतुल और हर कोई एक पल का गुस्सा समझ कर भुला देते हैं.....  लेकिन एक अंत की शुरुआत हो चुकी थी  क्या था वोह अंत  या अब क्या hone wala