आख़िर कार लालू जी और पासवान जी को यह बात स्वीकार करनी पड़ी की बिहार मैं कांग्रेस को दरकिनार करना दोनों की ही नेताओं और उनके दलों को महेंगा पड़ गया है, यहाँ तक की पासवान जी का तो संसद से पत्ता ही साफ़ हो गया है। बहुत पुरानी कहावत है की ज्यादा बड़ी बात और ज्यादा ऊंचा दावा कभी मुह से बहार नही निकालना चैयेह पर लालू जी और पासवान जी को क्या पता था की उनका बनाया चौथा मोर्चा दोनों नेताओं की राजनितिक हैसियत का तीसरा मनवा देगा जैसे की आईपीएल में कोलकाता की टीम और शाहरुख़ खान की जिद का दीवाला निकल गया , मतलब लालूजी , पासवान और शाहरुख़ इन सब के लिए गए निर्णय इनको न सिर्फ़ ग़लत साबित कर गए बल्कि इन्हे हँसी का पात्र भी बना गए।
यह सारा मामला यह साबित कर देता है की धीरे हे सही राष्ट्रीय दलों का खोया हुआ वजूद वापस लोट रहा है और क्षेत्रीय दलों को अपनी आत्म मुग्धता से अपने आप को बच्चा कर रखना होगा , फिर वो सपा हो, बसपा हो या लालू की और तमाम क्षेत्रीय दलों के पमुख हे क्यों न हो सबको एक बार सोचना तो पड़ेगा की क्या इनके दल वाकई इस काबिल है की इनके बिना कोई भी राष्ट्रीय दल अपना प्रभुतत्व नही जमा सकते ? यह सवाल क्या इन नेताओं को कुछ सोचने के लिए मजबूर करेगा ??? हो सकता है शायद कर भे दे पर उम्मीद तो कम है.
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