इस बार के लोकसभा चुनाव में गिरते हुए मत प्रतिशत को लेकर काफी बहस हो रही है। कुछ लोग कहते हैं की गर्मी की वजह से ऐसा हो रहा है। तो कुछ लोग मतदाताओं के ऊपर सवाल उठा रहे हैं की मतदाता जागरूक नही हैं, तो कुछ लोग कुछ अन्य कारण बता रहे हैं। पर किसी ने भी यह सोचा की कहीं हमारे नेता और उनके दलों का इसमे कोई योगदान हो सकता है ! जी हाँ मैं तो यही सोचता हूँ की कम मतदान की मुख्या वजह हमारे नेता और राजनितिक दल हैं, भारत मुख्या रूप से एक भावनात्मक देश है और यहाँ की जनता भी भावूक है, भोली है । इसी बात का फायदा हमारे नेता उठाते रहे हैं जाती, धरम , प्रान्त के आधार पर हर दल और नेता वोट माँगता है और शायद माँगता रहेगा।
लेकिन आजकल का वोटर भावुक कम जागरूक ज्यादा हो गया है उसे नेताओं के झूठे वाडे, दावे ज्यादा दिन तक मूर्ख नही बना सकते , कुछ नेता जैसे की गोविंदा , धर्मेन्द्र जब अपने चुनाव क्षेत्र से जीते तो दुबारा वहां शायद ही कभी गए हों। मुलायम सिंह हो या मायावती या लालू या पासवान जैसे नेता जो मंत्री पड़ के लिए ही चुनाव लड़ते हैं वोह भी जाती , और समाज के आधार पर और फिर पासवान साहब तो पिछले ३ बार से मंत्री रहे हैं ! राजग और सप्रंग दोनों के संग।
जनता अब जान गई है की नेता और अवसरवादी में क्या फर्क है फिर वो ममता बेनर्जी हो या उमा भारती या कल्याण सिंह ही क्यों न हो, जो की मौके की नजाकत के आधार पर इधर या उधर हो जाते हैं। हमारे देश में विको जैसे नेता भी हैं जो प्रभाकरन जैसे आतंकी का साथ देने के लिए तमिलनाडु में खून की नदी बहा देने को तैयार हैं , वही प्रभाकरन जो राजीव गाँधी की ह्त्या का मुख्या आरोपी मन जा रहा है.
खैर जो भी हो यह तो मेरी अपनी राइ है हो सकता है कुछ लोग मेरे विचार से सहमत न हों पर यह सब एक सच है और हमे यह मानना ही होगा की जब तक हमारे नेता अपने वादों और दावों में फर्क करते रहेंगे , अवसरवादिता और सौदेबाजी को बढावा देंगे तब तक मत प्रतिशत में बढोतरी होनी मुश्किल है क्योंकि आज का मतदाता खासकर शेहरी मतदाता को कोई दल या नेता ज्यनाही बना sakt
No comments:
Post a Comment